प्रकृति ने कितनी अनूठी और बेशकीमती चीजें दुनिया को दी हैं। इसका एक उदाहरण साइबेरिया की एक खदान में देखने को मिला। जहां एक हीरे के अंदर एक और हीरा मिला है। इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है। हम प्रकृति के कितने ऋणी हैं। इसका अहसास करने का मौका तक नहीं मिलता है। जब फुर्सत मिले तो जरा ध्यान से इस पर सोचिएगा। कुछ तो सकारात्मक निष्कर्ष निकलेगा।
प्रकृति ने पूरी दुनिया को अनमोल और बेशकीमती चीजों से नवाजा है, लेकिन हम हैं कि हर वक्त उसकी उपेक्षा करने पर तुले हैं। जिस जंगल ने सांसों को टूटने से रोक रखा है हम उसी का विनाश कर रहे हैं। आखिर हम कितने मुर्ख और अविवेकी हो गए हैं। स्वार्थ और आधुनिकीकरण ने हमें अंधा बना दिया है। यही वजह है हम रोजाना जंगल को साफ कर रहे हैं।
रूस की खदान कंपनी दावा किया कि हीरा 80 करोड़ साल से ज्यादा पुराना हो सकता है। मैट्रीओशका हीरे का वजन 0.62 कैरट है, जबकि इसके अंदर के पत्थर (हीरे) का वजन 0.02 कैरट है। घटती आकार की लकड़ी की गुड़िया के सेट एक दूसरे के अंदर रखा जाता है। इसे घटते हुए क्रम रखा जाता है। मैट्रीओशका डायमंड भी इसी क्रम का अनुसरण करता है। अलरोसा के 'रिसर्च एंड डेवलपमेंट जियोलॉजिकल एंटरप्राइज' के उपनिदेशक ओलेग कोवलचुक ने कहा कि जहां तक हम जानते हैं वैश्विक हीरे के खनन के इतिहास में अभी तक इस तरह का हीरा नहीं मिला है। यह वास्तव में प्रकृति की एक अनूठी रचना है। खासकर जब प्रकृति को शून्यता पसंद नहीं है।
वैज्ञानिकों ने एक्स-रे माइक्रोटोमोग्राफी के साथ स्पेक्ट्रोस्कोपी के कई अलग-अलग मेथड का उपयोग करके पत्थर की जांच की। अलरोसा के एक प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी की योजना आगे के विश्लेषण के लिए अमेरिका के जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट को मैट्रीओशका हीरा भेजने की है।
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