Tuesday 9 February 2010

दिल्ली मेट्रो: असुविधा के लिए खेद है

दिल्ली मेट्रो अपने सुहाने सफर में विस्तार करते हुए दिल्ली की देहरी लांघ कर नोएडा पहुंच गई. यह दिल्लीवासियों के साथ-साथ नोएडा में रह रहे लोगों के लिए काफी सुखद है. हालांकि नोएडा के लोगों को इसके लिए तीन साल का लंबा इंतजार करना पड़ा. नोएडा आई मेट्रो से लोगों को काफी उम्मीदें हैं. उम्मीदें इस बात की कि उसे जाम की समस्या से तो निजात मिलेगी ही, साथ ही उच्च स्तर की सुविधा भी मिलेगी, लेकिन सुविधा तो दूर की बात है, लोग समय से अपने कार्यालय भी नहीं पहुंच पाते हैं. आलम यह है कि लोगों को सुविधा के बजाय असुविधा से दो-चार होना पड़ रहा है. लोग शायद घर से यही सोचकर चलते हैं कि ऑफिस समय से पहले पहुंचना है. पर मेट्रो में हुई असुविधा से लोग कभी भी ऑफिस सही समय पर नहीं पहुंच पाते हैं, जिसके चलते ऑफिस में उन्हें बॉस की डांट खानी पड़ती है. ऐसा ही कुछ कहना है एमएनसी में काम करने वाली स्मृति का. उन्होंने कहा कि वह रोज एक घंटा पहले घर से ऑफिस के लिए निकलती है, लेकिन रा़ेजाना कार्यालय पहुंचने में उसे देर हो जाती है. जिसमें उसकी कोई गलती नहीं है. फिर भी उसे ही डांट खानी पड़ती है. मुंबई की तर्ज पर दिल्ली की लाइफ लाइन बनने वाली मेट्रो की हवा निकलती जा रही है. हालांकि एक तरफ तो धीरे-धीरे इसका विस्तार हो रहा. यह एक राज्य से दूसरे राज्य में पहुंच रही है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ विस्तार के बावजूद यात्री उसकी सुविधा से हैरान-परेशान हैं. आलम यह है कि रोज़ाना लाखों लोग इससे सफर करते हैं, लेकिन मेट्रो की लेटलतीफी और तकनीकि खराबी की वजह से लोगों को द़िक्क़त का सामना करना पड़ता है. मेट्रो मैन कह जाने वाले श्रीधरन साहब ने तो दिल्ली में मेट्रो का जाल बिछा दिया. लोगों को उस तरह की सुविधा मुहैया कराई, जो दिल्लीवासियों के लिए किसी गर्व से कम नहीं है. इस सुविधा से कमोबेश हर कोई खुश भी है, लेकिन एक बात ऐसी भी है, जिससे ज़्यादातर लोग नाखुश हैं. इस नाखुशी का कारण मेट्रो परिचालन और ट्रेन की फ्रीक्वेंसी कम होना है. अगर बात द्वारका से नोएडा की ओर जाने वाली मेट्रो ट्रेन की करें तो स्थिति बहुत ही ़खराब है. पिक ऑवर में तो इतनी भीड़ रहती है कि कुछ पूछिए मत. उस वक्त हाल बिल्कुल मुंबई लोकल ट्रेन की तरह हो जाता है. मतलब यह कि ट्रेन में च़ढते वक्त आपको स़िर्फ लाइन में खड़ा होना पड़ेगा. बाकी का काम तो लाइन में खड़े पीछे वाले कर देते हैं. स्थिति ये हो जाती है कि ट्रेन आई नहीं कि धक्का-मुक्की शुरू हो जाती है. ये तो हुई मुंबई की बातें. कुल मिलाकर दिल्ली मेट्रो के हालात भी कुछ इसी तरह के हैं. राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर आपको लंबी-लंबी लाइन देखने को मिल जाएगी. इतनी लंबी लाइन लगी रहती है कि भीड़ के कारण लोग यह जानते हुए भी कि दूसरी ट्रेन पन्द्रह मिनट बाद है, छोड़ देते हैं. फिर भी बात यहीं खत्म नहीं होती है. इस भीड़ में सबसे ज़्यादा द़िक्क़त महिलाओं और लड़कियों को होती है. सबसे पहले उन्हें ट्रेन में च़ढते समय द़िक्क़त होती है. क्योंकि दिल्ली मेट्रो की व्यवस्था मुंबई लोकल की तर्ज पर नहीं की गई है. दिल्ली मेट्रो में कोई ऐसी बोगी या कंपार्टमेंट में नहीं है, जिसमें स़िर्फ महिलाएं ही च़ढ सकें, जिसके चलते उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इतना ही नहीं अगर भीड़ के बावजूद वह ट्रेन में च़ढने में सफल हो जाती हैं, तो अंदर इतनी भीड़ होती है कि कुछ असामाजिक तत्व उन्हें परेशान करने से भी गुरेज नहीं करते. इसके बाद शुरू होता धक्का-मुक्की का दौर. अगर बात ब़ढ भी गई तो सॉरी मांग कर वे अपना पल्ला झाड़ लेते हैं. कभी-कभी तो इस तरह की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, भीड़ से खचाखच भरी ट्रेन में तड़ाक की आवाज सुनाई देती है. बाद में पता चलता है कि किसी ने बदतमिजी की है. एक बार की बात बता रहूं, मैं अपने सहयोगी के साथ कश्मीरी गेट मेट्रो स्टेशन से बाहर निकल रहा था. ठीक उसी वक्त एक मोहतरमा ने एक सज्जन को तड़ा-तड़ दो-तीन झापड़ उसके गाल पर रसीद दिए. वह सज्जन मोहतरमा द्वारा किए गए इस वार से हक्का-बक्का हो गए. हालांकि उस सज्जन व्यक्ति को देखने से उसके चहरे से शराफत झलकती थी, लेकिन उसकी सारी शराफत उस मैडम ने एक मिनट में तार-तार कर दी. ये हुई धक्का-मुक्की की बात. अब सुनाता हूं मेट्रो की छूक-छूक की कहानी. द्वारका-नोएड पर सफर करने वाले ज़्यादातर यात्रियों की शिकायत है कि मेट्रो चलते-चलते अचानक डीटीसी बस का रूप धर लेती है. मतलब अचानक से ब्रेक लग जाती. फिर अचानक से खुल जाती है. जिससे लोग हिचकोले खाते हैं, इस हिचकोले के चक्कर में कई लोग आपस में उलझ जाते हैं. कभी-कभी तो नौबत हाथापाई तक आ जाती है. अगर एक बार हिचकोले का दौर शुरू हुआ तो खत्म होने का नाम ही नहीं लेता. यह प्रक्रिया करीब आधे घंटे तक लगातार जारी रहती है. खैर इन बातों को दरकिनार कर दिया जाए तो डीएमआरसी वाले चिल्ला-चिल्ला कर आपनी सुविधा का बखान करते नहीं थकते हैं, लेकिन हक़ीक़त ठीक इसके उलट है. दिल्ली मेट्रो में तकनीकी खामियां भी थमने का नाम नहीं ले रही है. खासतौर पर द्वारका-नोएडा सेक्शन पर कभी सिग्नल तो कभी ट्रैक में द़िक्क़त जैसी तकनीकी समस्याएं सामने आ रही हैं, जिससे ठीक करने में मेट्रो इंजीनियरों को घंटों का समय लग जाता है और इसका खामियाजा यात्रियों को भुगतना पड़ता है. इससे हज़ारों यात्रियों को ऑफिस और व्यापार मेला पहुंचने में परेशानी होती है. कभी-कभी तो स्टेशन पर ही यात्री जमकर हंगामा करना शुरू कर देते हैं. उसके बाद मेट्रो ड्राइवर को यात्रियों को समझाना बुझाना पड़ता है.

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