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पत्नी से डरते हैं तो फोटो ले सकते हैं

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इस तस्वीर को गौर से देखिए। आपको क्या दिख रहा है? बहुत सारे कपड़े दिख रहे हैं न । वो भी बच्चों के कपड़े हैं। अरे! नहीं जनाब। जो मैं आपको दिखाना चाह रहा हूं उसे देखिए। इधर-उधर मत झांकिए। अब शायद आपकी नजर उस संदेश तक पहुंच गई होगी, जिसे मैं आपको दिखाना चाह रहा हूं। अब उस मैसेज को धीरे-धीरे पढ़िए। सब माजरा समझ में आ जाएगा। क्या लिख है उसमें। आप भी पढ़िए...'पत्नी से डर लगता है तो फोटो ले सकते हैं'। कपड़े की दुकान में लगा यह संदेश बहुत कुछ कह रहा है। इसके मायने क्या है? खैर जो भी हो, लेकिन इसमें सच्चाई कितनी है। इसका आकलन करना होगा। यह तस्वीर राजधानी दिल्ली के पालिका बाजार की है। यहां आपको जरूरत की हर चीजें मिल जाएंगी। अगर मोलभाव करने में माहिर हैं तो सस्ते दामों पर इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से लेकर सूई तक आपको मिल जाएगी। अगर इस कला में निपुण नहीं हैं तो जेब कटते देर भी नहीं लगेगी। यहां रोजाना रेलमपेल भीड़ रहती है। यहां जाने पर हर दुकानदार आपको आवाज देकर बुलाएंगे। जाना और न जाना आपकी मर्जी है। छुट्टी का दिन था। कुछ दोस्तों से मिलना था सो मिलने का स्थान तय हुआ कनाट प्लेस। तय समय पर प...

इतिहास में पहली बार हीरे के अंदर मिला हीरा

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प्रकृति ने कितनी अनूठी और बेशकीमती चीजें दुनिया को दी हैं। इसका एक उदाहरण साइबेरिया की एक खदान में देखने को मिला। जहां एक हीरे के अंदर एक और हीरा मिला है। इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है। हम प्रकृति के कितने ऋणी हैं। इसका अहसास करने का मौका तक नहीं मिलता है। जब फुर्सत मिले तो जरा ध्यान से इस पर सोचिएगा। कुछ तो सकारात्मक निष्कर्ष निकलेगा।  प्रकृति ने पूरी दुनिया को अनमोल और बेशकीमती चीजों से नवाजा है, लेकिन हम हैं कि हर वक्त उसकी उपेक्षा करने पर तुले हैं। जिस जंगल ने सांसों को टूटने से रोक रखा है हम उसी का विनाश कर रहे हैं। आखिर हम कितने मुर्ख और अविवेकी हो गए हैं। स्वार्थ और आधुनिकीकरण ने हमें अंधा बना दिया है। यही वजह है हम रोजाना जंगल को साफ कर रहे हैं। रूस की खदान कंपनी दावा किया कि हीरा 80 करोड़ साल से ज्यादा पुराना हो सकता है। मैट्रीओशका हीरे का वजन 0.62 कैरट है, जबकि इसके अंदर के पत्थर (हीरे) का वजन 0.02 कैरट है। घटती आकार की लकड़ी की गुड़िया के सेट एक दूसरे के अंदर रखा जाता है। इसे घटते हुए क्रम रखा जाता है। मैट्रीओशका डायमंड भी इसी क्रम का अनुसरण करता है। अलरोसा के '...

कहीं फीकी न पड़ जाए ऑस्ट्रेलिया ओपन की चमक

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ऑस्ट्रेलिया ओपन के शुरू होने में अभी महज कुछ ही दिन शेष बचे हैं। 15 जनवरी से ऑस्ट्रेलियाई सरजर्मी पर खिताबी भिड़ंत शुरू हो जाएगी, लेकिन उससे पहले ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस बार टक्कर दमदार नहीं होगी। वजह टेनिस के शीर्ष खिलाड़ियों का चोटिल होने के कारण टूर्नामेंट से बाहर होना। मतलब इस वर्ष स्टार खिलाड़ियों की अनुपस्थिति की वजह से पहले ग्रैंड स्लैम की चमक फीकी रहने वाली है। टूर्नामेंट के दौरान टेनिस प्रेमी अपने चहेते को नहीं देख पाएंगे। 12 ग्रैंड स्लैम जीत चुके जोकोविच इस बार फिर खिताब अपने नाम करना चाहेंगे। हालांकि उनके खेलने पर संशय बना हुआ है।    ब्रिटेन के एंडी मरे और जापान के केई निशिकोरी जैसे स्टार खिलाड़ी इस बार ऑस्ट्रेलिया ओपन में अपना दमखम नहीं दिखाएंगे। वे चोट लगने दूसरी तरफ जुलाई में दायीं कोहनी में चोट के कारण विंबडलन क्वार्टर फाइनल से हटने के बाद से जोकोविच नहीं खेले हैं। इससे पहले वह अबु धाबी में प्रदर्शनी मैच और कतर ओपन से हट चुके हैं। वह अगले हफ्ते मेलबर्न में कूयोंग क्लासिक और फिर यहीं टाई ब्रेक टेंस टूर्नामेंट में खेलकर अपनी चोट को परखेंगे। 12 बार के ग्रैंड...

सभागाछीः गाछी है पर सभा नहीं

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  September 20, 2010   बिमलेश कुमार मधुबनी ज़िला मुख्यालय से महज़ छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सौराठ गांव. यह गांव वैवाहिक सम्मेलन के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. यह सम्मेलन सौराठ सभा के नाम से जाना जाता है. सौराठ सभा संभवत: विश्व में अपने ढंग का अनूठा वैवाहिक सम्मेलन है, जहां प्रति वर्ष मैथिल ब्राह्मण समुदाय के लड़के-लड़कियों की शादियां तय होती हैं, लेकिन अब यहां से शादी तय करना गुजरे जमाने की बात हो गई है. लोग यहां आना तक मुनासिब नहीं समझते, जिसके चलते इस ऐतिहासिक परंपरा का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है. अगर समय रहते लोगों ने इस पर सोचना शुरू नहीं किया तो यह ऐतिहासिक परंपरा इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगी. वरों का यह अनूठा मेला अब अपनी चमक खोता जा रहा है. एक समय था, जब शादी करने और कराने वालों की यहां भीड़ लगी रहती थी. कहा तो यहां तक जाता है कि मेले में लोगों को पैर रखने के लिए जगह तक नहीं मिलती थी. लाखों की संख्या में लोग आते थे, लेकिन अब मुश्किल से एकाध हज़ार लोग ही मेले में पहुंचते हैं. यही वजह है कि ऐतिहासिक सभागाछी खत्म होने की कगार पर पहुंच गई है....

खतरे में गंगा की डॉल्फिन

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गंगा की डॉल्फिन खतरे में है. सरकार ने इसे राष्ट्रीय जल जीव घोषित कर लोगों में जागरूकता बढ़ाने की कोशिश की है. भारत सरकार इसकी रक्षा के लिए समर्थन जुटाना चाहती है. सरकार का मानना है कि इस कदम से युवा पीढ़ी में डॉल्फिन के संरक्षण और उन्हें बचाए रखने की भावना जागेगी, मगर असलियत यह है कि जिन लोगों पर इसे बचाने और इसके संरक्षण की जिम्मेदारी है, वही अपने कर्तव्यों का निर्वहन ठीक से नहीं कर रहे हैं. भागलपुर के पास बना विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभ्यारण्य सुल्तान गंज से कहलगांव तक 50 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है. यह एशिया का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां गंगा की विलुप्त हो रही डॉल्फिनों को संरक्षित और बचाने की पहल की गई है. यह अभ्यारण्य वर्ल्ड वाइड फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और भारतीय संगठनों का मिलाजुला प्रयास है. सरकारी दस्तावेजों में गंगा डॉल्फिन को बचाने की मुहिम तेज कर दी गई है, लेकिन डॉल्फिनों का शिकार बंद नहीं हो रहा है. हाल ही में बिहार में गंगा नदी के किनारे चार डॉल्फिनें मरी पाई गईं. शिकारियों ने इन्हें पहले जाल में फंसाया, फिर इन्हें तब तक पीटा, जब तक इनकी म...

दिल्ली मेट्रो: असुविधा के लिए खेद है

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दिल्ली मेट्रो अपने सुहाने सफर में विस्तार करते हुए दिल्ली की देहरी लांघ कर नोएडा पहुंच गई. यह दिल्लीवासियों के साथ-साथ नोएडा में रह रहे लोगों के लिए काफी सुखद है. हालांकि नोएडा के लोगों को इसके लिए तीन साल का लंबा इंतजार करना पड़ा. नोएडा आई मेट्रो से लोगों को काफी उम्मीदें हैं. उम्मीदें इस बात की कि उसे जाम की समस्या से तो निजात मिलेगी ही, साथ ही उच्च स्तर की सुविधा भी मिलेगी, लेकिन सुविधा तो दूर की बात है, लोग समय से अपने कार्यालय भी नहीं पहुंच पाते हैं. आलम यह है कि लोगों को सुविधा के बजाय असुविधा से दो-चार होना पड़ रहा है. लोग शायद घर से यही सोचकर चलते हैं कि ऑफिस समय से पहले पहुंचना है. पर मेट्रो में हुई असुविधा से लोग कभी भी ऑफिस सही समय पर नहीं पहुंच पाते हैं, जिसके चलते ऑफिस में उन्हें बॉस की डांट खानी पड़ती है. ऐसा ही कुछ कहना है एमएनसी में काम करने वाली स्मृति का. उन्होंने कहा कि वह रोज एक घंटा पहले घर से ऑफिस के लिए निकलती है, लेकिन रा़ेजाना कार्यालय पहुंचने में उसे देर हो जाती है. जिसमें उसकी कोई गलती नहीं है. फिर भी उसे ही डांट खानी पड़ती है. मुंबई की तर्ज पर दिल्ली की लाइफ ल...